Monday 18 April 2016

बीज


दो बीज बोऐ ऐको खेत मा,
ऐको सा पालन पोषण दोनां का,
ऐको पानी, ऐको खाद्द संग,
ऐको माँ धरा की गोद मिली,
ऐको सी ही हवा चली,
ऐको सी ही फ़िज़ा खिली,
दो बीज बोऐ ऐको खेत मा,
ऐको सा पालन पोषण दोनां का। 


बीज अब पोधे भये,
आस  के नए सोधे भये,
दोनां ने अपना अपना राह चुना,
ऐक इस ओर तो दूसरा दूसरी ओर चला,
दो बीज बोऐ ऐको खेत मा,
ऐको सा पालन पोषण दोनां का|

यह फर्क पता ना था, कुदरत का !
यह फर्क पता ना था, कुदरत का !
या...
निचोड़ कोई था कर्मो का। 
ऐक को भर भर के फूल मिले,
दूसरे को कांटो का हार मिला,
एक कई आँखों का तारा बना,
दूसरा हर आँख में खटकता रहा,
दो बीज बोऐ ऐको खेत मा,
ऐको सा पालन पोषण दोनां का|

तू भी बीज है किसी पौधे का,
तू भी बीज है किसी पौधे का,
जो कि वृक्ष बढ़ा विशाल बने,
कर हर काम ऐसा,
जो दुनिया तुझे याद करे|

दोनों राह हैं खुले तेरे सामने,
दोनों राह हैं खुले तेरे सामने,
यह दुआ है मेरी,
तू राह हमेशा साफ़ चुने,
दो बीज बोऐ ऐको खेत मा,
आज बन फ़सल आन हैं खड़े|

                                                                     --- नवतेज सिंह बाजवा 

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